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1

Khwaja Ahmad Shadab

Abstract:
This paper includes the functions and other features of the invented devices “Izana Kidney Meter” and “APHV Meter”, which are fully non-electric and non-invasive. Izana Kidney Meter helps achieve or obtain the values of eGFR as per Serum Creatinine, eGFR as per Serum Cystatin C, Combined eGFR, CKD or G Stages, Kidney Length, Right Renal Parenchymal Thickness, and normal range maximum value of this Ratio (Cys C/ Cr). On the other hand, APHV Meter helps get the values of Age Peak Height Velocity & Maturity Offset (in the growing children, Age Group: 8-16 years). The Accuracy and the Result-Speed of these devices have been tested against the widely accepted standardized tools and devices. This paper includes these Test-Results.


1-22
2

प्रियंका कुमारी

Abstract:
महर्षि दयानंद सरस्वती, भारत के महान समाज-सुधारक और आर्य समाज के संस्थापक, ने भारतीय संस्कृति, वेदों एवं योग साधना के महत्व को पुनः स्थापित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उन्होंने योगसाधना को केवल शारीरिक व्यायाम न मानकर, इसे मानव जीवन के शारीरिक, मानसिक, बौद्धिक और आध्यात्मिक पक्षों के साथ संपूर्ण विकास, का मार्ग बताया है। स्वामी जी ने योगसाधना को आत्मज्ञान, ब्रह्मज्ञान तथा मोक्ष प्राप्ति के लिए एक अनिवार्य साधन मानते है। उनका दृढ निष्चिय था कि योग के अभ्यास से मानव न केवल अपने जीवन को अनुशासित बनाता है, बल्कि समाज एवं राष्ट्र की प्रगति में भी योगदान देता है। योगसाधना के लिए उन्होने मुख्यतः उपासनायोग षब्द का प्रयोग किया है। स्वामी जी द्वारा प्रतिपादित योग साधना के सिद्धांतों, उनके व्यावहारिक स्वरूप तथा उनके सामाजिक एवं दार्शनिक प्रभाव का विश्लेषण किया गया है। महर्षि ने पतंजलि योगसूत्र के आधार पर ही अश्टांगयोग के अंगों (यम, नियम, आसन, प्राणायाम, प्रत्याहार, धारणा, ध्यान और समाधि) को जीवन में लागू करने की आवश्यकता पर बल दिया। उनके अनुसार यम और नियम के पालन से नैतिक और सामाजिक जीवन को सुदृढ़ किया जा सकता है, जबकि ध्यान और समाधि जैसे आंतरिक अभ्यास से व्यक्ति आध्यात्मिक ऊँचाइयों को प्राप्त कर सकता है। योगसाधना को वैदिक जीवनशैली के साथ जोड़ते हुए इसे जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में लागू करने की आवश्यकता पर बल दिया। उनके विचार में योग केवल व्यक्तिगत साधना तक सीमित नहीं है, बल्कि यह सामाजिक और राष्ट्रीय उत्थान का भी मार्ग है। योग साधना के माध्यम से व्यक्ति अपने शरीर, मन और आत्मा में संतुलन स्थापित कर सकता है, जिससे वह अपने कर्तव्यों का निर्वहन अधिक प्रभावी ढंग से कर पाता है।


23-29
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