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श्री शंभुनाथ बलियासे ‘मुकुल’ की पत्रकारिता
डाॅ. धु्रव प्रसाद देव
Abstract:
‘जितने पत्रकार, उतने विचार’, फलतः ‘काम कम और प्रचार अधिक’ पर लोग विश्वास कर रहे हैं। तभी तो ‘प्रोपेगैण्डा’ प्रभु का प्रताप सर्वत्र दिखता है। लोग ‘पब्लिक, ओपिनियन’ को ‘बोल्ड’ करने के लिए ‘प्रेस’, ‘पेपर’ और ‘प्लेटफाॅर्म’ की बात करते हैं। पत्र-पत्रिका, समाचार पत्र, प्रकाशन आदि का सामूहिक नाम ही पत्रकारिता है। पत्र-पत्रिका और समाचार पत्र आदि के लिए ही लेखन-कार्य कर जीविकोपार्जन करने वाले प्रायः ‘पत्रकार’ के नाम से जाने जाते हैं। विचार-स्वातंत्रय का प्रकाशन पत्र-पत्रिकाओं और समाचार पत्रों के माध्यम से ही होता है। पत्रकारों में सम्पादक का स्थान महत्त्वपूर्ण होता है क्योंकि संपादक पत्रों के लिए स्वयं नहीं लिखता, पर उनमें प्रकाशित समाचारों का, विषयों का सम्पूर्ण उत्तरदायित्व उसी पर होता है। उपसंपादक, संशोधक आदि भी पत्रकार के ही अंतर्गत आते हैं। देश-विदेश की सारी हलचल का नवीनतम लेखा-जोखा पत्रों के द्वारा ही होता है। कलकत्ता, मुंबई जैसे विशाल नगरों में निम्न आर्थिक और शैक्षिक स्तर के व्यक्ति भी, जो अटक-अटक कर पढ़ पाते हैं, अखबार लिए हुए दिखाई देते हैं। निश्चय ही, यह हमारी व्यापक सामाजिक चेतना का प्रतीक है। पत्रकारों को इतिहास, भूगोल, अर्थनीति, राजनीति, विदेश-नीति का पूरा ज्ञान होना चाहिए। कबीर के शब्दों में पत्रकारों को ‘सूप सुभाई’ (सूप के स्वभाव वाला) होना चाहिए। तथ्य ग्रहण की शक्ति, संतुलन बनाये रखने की क्षमता, उचित निर्णय देने का ज्ञान, प्रचलित विचार धाराओं का सम्यक् ज्ञान पत्रकारों के लिए आवश्यक है। पं॰ प्रताप-नारायण, आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी, गुलाब राय, पं॰ बाबू राव विष्णु पराड़कर आदि पत्रकारों ने हिन्दी पत्रकारिता को सतत आगे बढ़ाया। बिहार के हिन्दी पत्रकारों में शिवपूजन सहाय का नाम सदा स्मरणीय रहेगा, जिन्होंने अपनी प्रतिभा से न जाने कितने साहित्यकार और पत्रकार उत्पन्न किये और गढ़े।